कैसे टुकड़ों में जिया जाता है।
सुनो , चलो तुझे टुकड़ो में जीना सिखाता हूँ
क्या, नहीं सीखना?
ठीक है, केवल टुकड़ों में जीने की कला से परिचय कराता हुँ।
एक नन्हा बालक जब भूख से बिलबिलाता है,
माँ के पयोधर में भी जो,अमृत कम पड़ जाता है।
कमियों में पलकर भी वह,आंसू से भूख मिटाता है,
देखो टुकड़ों में पहली बार ऐसे ही जिया जाता है।
कुछ वर्षों के बाद जब बालक कदम बढ़ाता है,
पग में कांटे-कंकड़ गड़ते फिर भी बढ़ता जाता है।
कटे पतंग के पीछे भागता,पतंग टुकड़ो में पाता है,
टुकड़ों में बालकपन ऐसे ही जिया जाता है।
जाता है जब पढ़ने को तो...
क्या, नहीं सीखना?
ठीक है, केवल टुकड़ों में जीने की कला से परिचय कराता हुँ।
एक नन्हा बालक जब भूख से बिलबिलाता है,
माँ के पयोधर में भी जो,अमृत कम पड़ जाता है।
कमियों में पलकर भी वह,आंसू से भूख मिटाता है,
देखो टुकड़ों में पहली बार ऐसे ही जिया जाता है।
कुछ वर्षों के बाद जब बालक कदम बढ़ाता है,
पग में कांटे-कंकड़ गड़ते फिर भी बढ़ता जाता है।
कटे पतंग के पीछे भागता,पतंग टुकड़ो में पाता है,
टुकड़ों में बालकपन ऐसे ही जिया जाता है।
जाता है जब पढ़ने को तो...