...

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प्रकृति
कभी तन्हा मैं रहूं तो तुझसे बातें करूं
कभी वक्त न मिले मिलने को तो मैं तेरे लिए मरुं

तू अपने में है सुन्दर और विस्तृत
जब तुम से मिलती हूँ तभी होतीं हूँ तृप्त

तेरे है अनेक स्वरुप
तेरे पास आते ही मेरा भी बदल जाता है रुप

तुम में है शांति और ममता भरपूर
तुम अपना प्यार हम पर लूटाती हो बनकर नूर

हे "प्रकृति" तेरे लिए है सब समान
परंतु तुम मेरे लिए हो अद्भूत ज्ञान ।।



- अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी -

© Anki