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☁️ चिल्लाना ☁️
कविता : चिल्लाना
कवि : जोत्सना जरी

(1)

ई सागर और नादिया की पशो

मय वि चालू तुम वि चलो

जिंदेगी भी एयिसि वेरि

दे दो या ले लो।


(2)
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