...

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जरा ठहर जा..
फिर सजाने जिंदगी जरा ठहर जा
रुक आशियाने अपने न शहर जा

फिर खिल उठेगा वही समा
न कर खुद पर तू गुमां

खुद को रोक जरा साध ले
घर में रुक मन बांध ले

आपा धापी में तू भागता रहा
न देखा कुछ सब फांदता रहा

औरों से जरा खुद को छांट ले
परिवार में वक्त जरा बांट ले

बुरा समय भी बीत जाएगा
खुद कुछ नया सीख जाएगा

फिर होंगे परवाज जरा सब्र कर
बाहर निकलने की न जब्र कर
- kumar vikas