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अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
फिर व्याघ्र की भाँति आहार करता है।

मनचाहा कानन में विहार करता है
छिपकर कमजोर का शिकार करता है
यह न किसी का लिहाज करता है
दिन-रात कुछ न कुछ विचार करता है।

अपने अहंभाव में अनाचार करता है
कभी न संत सा सदाचार करता है
सदा निशाचर सा व्यवहार करता है
फिर भी अपने को वफादार कहता है।


© Rakesh Kushwaha Rahi