...

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लम्हे जीते हैं मगर कुछ तो शराफत से अभी
नज़रें मिलती है मगर कुछ तो नफ़ासत से अभी

शाम से सहर बदलती ये बताये कैसे
सब्र की बांध दरकती ये ज़तायें कैसे
ख़ामोशी भरी बात को रखते है नजाकत से अभी
लम्हे जीते हैं मगर कुछ तो शराफत से अभी

दिल में जो लौ सी है फिर उसको बुझाए कैसे
बेकली सीने में दफन ये सुनाए कैसे
पन्ने रक्खे है मोहब्बत के हिफाजत से अभी
लम्हे जीते है मगर कुछ तो शराफत से अभी
© Nitin Singh