"कल्पना काल"
तीन काल में मै इस चल रहे काल को कल्पना मानता हुँ,
दुनिया ने क्या खूब सीखाया है अब तो यही सच मान के चलता हुँ,
जो मेरा नहीं हो सकता उसे मै पराया मानता हूँ,
जीवन की हर सीमा को पार करना चाहता हुँ,
जीवन की हर घड़ी में मै पाखंडी बना फिरता हुँ,
क्युकी ख़ुद को बहोत बारीक़ी से देख रहा हूँ,
लिखाई पढ़ाई में कुछ ख़ास नहीं था बस जिंदगी का व्याकरण सीख रहा हूँ,
गया वोह दिन जब क़लम की साही से कविताएँ लिखता था अब भी लिखता हुँ,
बस उँगलियों का इस्तेमाल करके कविता लीखता हुँ,
डाकिया के...
दुनिया ने क्या खूब सीखाया है अब तो यही सच मान के चलता हुँ,
जो मेरा नहीं हो सकता उसे मै पराया मानता हूँ,
जीवन की हर सीमा को पार करना चाहता हुँ,
जीवन की हर घड़ी में मै पाखंडी बना फिरता हुँ,
क्युकी ख़ुद को बहोत बारीक़ी से देख रहा हूँ,
लिखाई पढ़ाई में कुछ ख़ास नहीं था बस जिंदगी का व्याकरण सीख रहा हूँ,
गया वोह दिन जब क़लम की साही से कविताएँ लिखता था अब भी लिखता हुँ,
बस उँगलियों का इस्तेमाल करके कविता लीखता हुँ,
डाकिया के...