...

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अंजान राहे
आज कुछ अनजान राहो पर चलती जा रही हूं,
जहां भी देखू खुद को अकेला पा रही हूं,
लग रहा डर इन राहो पर,
कही खो न जाऊ मैं,
कोई तो मिलेगा आगे,
इस आस मे बस चलती ही जा रही हूं।
बढते कदम रुकते नही,
चलते-चलते थकते नही,
पहुंचु किसी मंजिल पर जल्दी,
यह खुद को समझा रही हूं,
इन अंजान राहो पर बस चलती ही जा रही हूं, बस चलती ही जा रही हूं।।

© t@nnu