...

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प्रिये
मैं शहर का शोर शराबा,
तू गांव जैसी शांत प्रिये !

मैं उलझा हुआ सा ख़्वाब कोई,
तू सुलझी हुई सी बात प्रिये !

मैं दोपहर की चिकचिक,
तू सुकून भरा रात प्रिये !

मैं दूरियों का पैमाना,
तू हसीन मुलाक़ात प्रिये !

मैं इश्क़ सीखने का आदी,
तू इश्क़ की पूरी जात प्रिये !

मैं बिखरा हुआ सा जवाब तेरा,
तू सिमटा हुआ सवालात प्रिये !

मैं थोड़ा अलग इस दुनिया से,
मगर मिलते हैं तुझसे ख़यालात प्रिये !

मैं कागज़ पर गिरी स्याही,
तू तराशा हुआ जज़्बात प्रिये !