देखा है...
आज मैने बेजान चीजो को बोलते देखा...
उन्हे चलते दौड़ते जीतते देखा,
क्या सही क्या झूठ है कौन सही कौन गलत है
मै नही जानती...
कौन सा धर्म कब उदय हुआ कब खत्म
मैने नहीं देखा...
मैने बस
धर्म जाती के बन्धन से
आया हुआ काला तूफान देखा है...
हाँ मैने...
लोगों के स्वाभिमान को कुचलते देखा है...
रह रह कर दर्द मे तड़पते देखा है...
अपने मातृभूमि से बिछड़ते देखा है...
कभी चलती साँसों में अपाहिज तो
कभी साँसो को छिनते देखा है
ये सब मैने बेजान में नही इंसानो में देखा है
इंसान को हैवान बनकर इंसान को मारते देखा है
इन सब से मे इंसानियत खत्म होते देखा है....
बेन्तिहा प्यार को नफरत में बदलते देखा है...
है न Hunnyy जैसे आप मुझसे नफरत करने लगे..... अब सिर्फ यही रह गया मेरे लिए....
© shafika singh
उन्हे चलते दौड़ते जीतते देखा,
क्या सही क्या झूठ है कौन सही कौन गलत है
मै नही जानती...
कौन सा धर्म कब उदय हुआ कब खत्म
मैने नहीं देखा...
मैने बस
धर्म जाती के बन्धन से
आया हुआ काला तूफान देखा है...
हाँ मैने...
लोगों के स्वाभिमान को कुचलते देखा है...
रह रह कर दर्द मे तड़पते देखा है...
अपने मातृभूमि से बिछड़ते देखा है...
कभी चलती साँसों में अपाहिज तो
कभी साँसो को छिनते देखा है
ये सब मैने बेजान में नही इंसानो में देखा है
इंसान को हैवान बनकर इंसान को मारते देखा है
इन सब से मे इंसानियत खत्म होते देखा है....
बेन्तिहा प्यार को नफरत में बदलते देखा है...
है न Hunnyy जैसे आप मुझसे नफरत करने लगे..... अब सिर्फ यही रह गया मेरे लिए....
© shafika singh
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