...

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पड़ता हैं
ज़िन्दगी भी एक नाटक हैं हर रोज़ ख़ुद का क़िरदार निभाना पड़ता हैं,
हर रिश्ते से अलग क़िरदार एक ज़िन्दगी में कितने किरदारों को जीना पड़ता हैं,
मुस्कुराना नहीं यहां दूसरों की खुशी के लिए खुद को सताना पड़ता हैं,
सच्चा रो नहीं सकते यहां दुनियां को झूठा हंस के दिखना पड़ता हैं,
खुद के सपने,शौंक कुचल कर कभी अपना कभी ससुराल चलाना पड़ता हैं,
सबसे कमाल यहां खुद के कत्ल का बोझ खुद ताउम्र उठाना पड़ता हैं,
बेगुनाह होते हुए भी यहां जीने को सर पे कोई इल्ज़ाम लगाना पड़ता हैं,
नफ़रत बिना कहे पता चल जाती 'ताज' पर यहां प्यार जताना पड़ता हैं।
ज़िन्दगी भी एक नाटक हैं हर रोज़ ख़ुद का क़िरदार निभाना पड़ता हैं।
© taj