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Dilakash bevapha
Dilakash bevapha

वो इतना कातिल ना होता या मैं इतना नाजुक ना होता

वो दिलकश बेवफा नहीं होता या मैं शायर ना होता



ना ये दर्द गम की स्याही से सफेद सफों पे बिखरते

ना ये अश्क मचले हो ते ना ये तड़प के निकले हो ते

वो ना इतना हसीन होता बस कि देखते ही दिल आता

वो इतना कातिल ना होता या मैं इतना नाजुक ना होता



रहते सदा अंधेरे ही अंधेरे दिल जलाने को उजाले ना आते

या तो इस तरह जुदा ना होता या जिंदगी में ना आता

दिल में आग लगानी ना होती या ये सावन ना आता

वो इतना कातिल ना होता या मैं इतना नाजुक ना होता



वो शौक मनचला ना होता या मैं बेसब्र दिलजला ना होता

या तो उनकी मेहरबानी ना होती या ये सितम जलजला ना होता

या तो दिल पत्थर का होता या इस कदर तड़प के ना रोता

वो दिलकश बेवफा ना होता या मैं शायर ना होता



अपना गम हल्का करने की खातिर बेवजह औरो को तो ना रुला ते

अपना दिल बहलाने की खातिर औरो को ना तड़पाते

ये गम का मारा दिल ना होता या ये महफिल को जमाया ना होता

वो दिलकश बेवफा नहीं होता या मैं शायर ना होता


✍️ अखिल चतुर्वेदी






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