...

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वास्तविक सुंदरता
हम,
उसके सौंदर्य को,
तरह- तरह के उपमाओं से,
अलंकृत करते हैं,
ताकि उसके लिए,
अभिमान का एक आधार,
तैयार कर सके।
और समय- समय से,
हम उसका उपभोग कर सकें।
लेकिन उपभोग के बाद,
वो सारे अलंकरण,
धूमिल हो जाते हैं।
फिर वो उस अभिमान के आधार को,
बचाएं रखने के लिए,
प्रयोग करती है ,
तरह-तरह के प्रसाधन सामग्री और
नए-नए चाल-चलन का।
लेकिन ताजुक्क की बात ये हैं कि,
ये सब एक दिन ख़त्म हो जाती हैं।
बची रहती हैं तो बस,
वास्तविक और आंतरिक सुंदरता।


- अखण्ड प्रताप हितैषी
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