लड़कियों कि आज की हकीकत।
मासूम जान अपने पीढ पर बसता लादगार,
अपनी पहचान बनाने जा रही है।
अपने घर को लौटते वक्त,
न जाने कितने दरिंदों से बच के आ रही है।
देवता दिखने वाले शक्ल के ये भेडीए,
न जाने कितनी मासूम जानो को तबाह कर रहे हैं ।
गलतीे उनकी न होने के बाद भी,
यह दुनिया के लोग तोहमत उन पर लगाते हैं।
जो सर उठा कर जी रही है,
उनका सर भी झुकने पर मजबूर करा देते हैं।
लड़कियों को अपने पांव की जूती समझ कर रखते हैं,
चार दिवारी में बंद रहने के काबिल समझते हैं,
उनकी जिंदगी की लगाम अपने हाथों मे थामे रखते हैं।
न जाने क्यों उन्हें उनके अधिकारों से,
उनकी शिक्षा से, उनकी पहचान से,
उन्हें हमेशा वंचित रखते हैं।
उनका शोषण किया जाता है।
जब कहीं मिल जाते हैं उन्हें शिक्षा पाने के अधिकार,
या इन चार दिवारी से बाहर निकलने की इजाजत,
वह तो अपने सपनों की उड़ान पूरी करने निकलती है,
अपनी भी इस दुनिया में पहचान बनाने को निकलती है
पर कुछ लोगों को मंजूर नहीं उनकी यह उड़ान उनकी यह पहचान,
उनकी काबिलियत पर भी करते हैं उनको बदनाम।
न जाने क्यों नहीं चाहते यह दरिंदे उनकी उड़ान।
जब कभी वो छू लेती है आसमा को,
तो यह देवता जैसे दिखने वाले बहरूपिया
नोच लेते हैं उनकी खुशियों को।
कर उनको शर्मिंदा ,
उनको भीतर-ही-भीतर तड़पने पर मजबूर कर देते हैं।
उनके हौसलों को तोड़ ,
कर देते हैं उनको बेब्स आत्महत्या की ओर
बना देते हैं उन्हें खुद के शोषण का हकदार
क्यों नहीं बनता कोई उनको इन्साफ दिलाने का हकदार
हर कोई कहता है ,
यही है इनको इनके अधिकार देने का अंजाम।
कोई नहीं करता अपनी इस घटिया सोच का बलिदान।
© Lalita paliwal
अपनी पहचान बनाने जा रही है।
अपने घर को लौटते वक्त,
न जाने कितने दरिंदों से बच के आ रही है।
देवता दिखने वाले शक्ल के ये भेडीए,
न जाने कितनी मासूम जानो को तबाह कर रहे हैं ।
गलतीे उनकी न होने के बाद भी,
यह दुनिया के लोग तोहमत उन पर लगाते हैं।
जो सर उठा कर जी रही है,
उनका सर भी झुकने पर मजबूर करा देते हैं।
लड़कियों को अपने पांव की जूती समझ कर रखते हैं,
चार दिवारी में बंद रहने के काबिल समझते हैं,
उनकी जिंदगी की लगाम अपने हाथों मे थामे रखते हैं।
न जाने क्यों उन्हें उनके अधिकारों से,
उनकी शिक्षा से, उनकी पहचान से,
उन्हें हमेशा वंचित रखते हैं।
उनका शोषण किया जाता है।
जब कहीं मिल जाते हैं उन्हें शिक्षा पाने के अधिकार,
या इन चार दिवारी से बाहर निकलने की इजाजत,
वह तो अपने सपनों की उड़ान पूरी करने निकलती है,
अपनी भी इस दुनिया में पहचान बनाने को निकलती है
पर कुछ लोगों को मंजूर नहीं उनकी यह उड़ान उनकी यह पहचान,
उनकी काबिलियत पर भी करते हैं उनको बदनाम।
न जाने क्यों नहीं चाहते यह दरिंदे उनकी उड़ान।
जब कभी वो छू लेती है आसमा को,
तो यह देवता जैसे दिखने वाले बहरूपिया
नोच लेते हैं उनकी खुशियों को।
कर उनको शर्मिंदा ,
उनको भीतर-ही-भीतर तड़पने पर मजबूर कर देते हैं।
उनके हौसलों को तोड़ ,
कर देते हैं उनको बेब्स आत्महत्या की ओर
बना देते हैं उन्हें खुद के शोषण का हकदार
क्यों नहीं बनता कोई उनको इन्साफ दिलाने का हकदार
हर कोई कहता है ,
यही है इनको इनके अधिकार देने का अंजाम।
कोई नहीं करता अपनी इस घटिया सोच का बलिदान।
© Lalita paliwal