...

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क्या, वो यह तमगा तोड़ पाई है l
सशक्त है आज की नारी...
काट डाली पैरों की बेड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए बढ़ पाई हैl

फैला कर पंखों की जोड़ी...
पलकों पे सजा के ख्वाबों की लड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए उड़ पाई हैl


सामाजिक...