...

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क्या, वो यह तमगा तोड़ पाई है l
सशक्त है आज की नारी...
काट डाली पैरों की बेड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए बढ़ पाई हैl

फैला कर पंखों की जोड़ी...
पलकों पे सजा के ख्वाबों की लड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए उड़ पाई हैl


सामाजिक मुद्दों की आई बारी...
मिलती सबसे आगे वो खड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए अड़ पाई है l

बन कर वह परिवार की धुरी...
आंच आई जब सिहनी-सी दहाड़ी,
क्या सचमुच अपने लिए लड़ पाई है l

डाल के कंधों पे सारी ज़िम्मेदारी..
कभी अबला कभी सबला कभी कहा बेचारी,
क्या वो यह तमगा तोड़ पाई है l
#naari #self #life
© #vineeta