...

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खामोश जिंदगी....
जो तहरीर उसने कभी लिखी ही नहीं
ये निगाहें उसे हर रोज़ पढ़ा करती है

नहीं है क्षितिज के उस पार कुछ भी
लेकिन एक उम्मीद है कि मरती नहीं है

बिखरती जा रही है वक़्त की रेत हाथों से
और बंद मुट्ठी की मायूसी को बढ़ा रही है

चमकते थे जो ख्वाब सितारों की तरह
हकीकत की रात उन्हें निगलती जा रही है

राह तो ये यूँ भी सदा से अकेली ही थी
पर अब कदमों की चाप भी खो रही है

ना जाने तू हारी है या जीती है ए जिंदगी
लेकिन तेरी खामोशी अब बढ़ती जा रही है


© * नैna *