...

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भटकाव
सोचता हूं-

इसमें - उसमें .. इनमें- उनमें...
इधर- उधर... यहां - वहां
की चाह क्यूं है ?

जब सब कुछ है अंतर्निहित
यहीं- मुझमें ही...
तो यह 'भटकाव' क्यों है ?

एक अर्से तक यह सवाल
ज़हन में घूमता रहा।

शनै: शनै: फिर यह उजागर हुआ
कि यह 'भटकाव' ही तो जरिया है
एहसास कराने का....

यहां - वहां, इधर- उधर
इसमें - उसमें , इनमें - उनमें से
असली पड़ाव तक ले जाने का !

यह ' भटकाव 'भटकाता है जरूर
पर हमें 'स्वंय' से मिलाता है
जरुर ।।

- स्वरचित
© ओम 'साई'
०२ जुन २०२१


© aum 'sai'