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इक जंग ...खुद से
हैं शोर कुछ मंद क्यों
तू शेर सा दहाड़
कर प्रश्न कुछ खुद से ही
अपने जबाब खुद ही ढूंढ डाल
मन की इन अटखेलियों को
न तू यूँ हवा में उड़ाए जा
मज़बूत कर एक मन को तू
एक राग बजाए जा
न सुन ,न देख ,न फिक्र कर
तू ज़माने को धुएं में उड़ाए जा
तू आया नही खाने पीने ऐश करने
एक लक्ष्य संज़ीदगी में बना जा
कर फतेह खुद से जंग
कुछ नाम तू कमा
अय्याशीयों में डूब के
तू खुद को न भुला
© pari
तू शेर सा दहाड़
कर प्रश्न कुछ खुद से ही
अपने जबाब खुद ही ढूंढ डाल
मन की इन अटखेलियों को
न तू यूँ हवा में उड़ाए जा
मज़बूत कर एक मन को तू
एक राग बजाए जा
न सुन ,न देख ,न फिक्र कर
तू ज़माने को धुएं में उड़ाए जा
तू आया नही खाने पीने ऐश करने
एक लक्ष्य संज़ीदगी में बना जा
कर फतेह खुद से जंग
कुछ नाम तू कमा
अय्याशीयों में डूब के
तू खुद को न भुला
© pari
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