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विरह वेदना....क्यों छोड़ गए कान्हा....
जैसे बिछड़ गए सब रिश्ते नाते,छूट गईं मायके की गलियां।
झुलस गए हों फूल शाख के, जैसे टूट गईं मासूम सी कलियां।।

झीलों को जाने कैसी पीड़ा है,जो तैरती कश्तियां डूब गईं।
जैसे बदल लिए हैं रास्ते मेरे घर से,खुशियां तो मानो ऊब गईं।।

ना चाह रही अब छांव,लगाव की, वो बागियां सारी उजड़ गईं।
वो ले गए दिल-ए-करार,मन-ए-ख्याल मेरे,मेरी निंदियां उखड़ गईं।।

बरस भर का दिन भयो है सखी, अब बीते ना ये बैरी रैना।
रह- रह तेरी याद सताए मोरे प्रीतम,दिल कहीं ना पाए चैना।।

दिन जैसे तैसे गुजरा गयो, काटे ना कटे अब ये निगोडी रतियां।
जलाएं,सताएं,तरसाएं,झुलसाएं जब-जब याद आएं तोरी बतियां।।

सूना लागे अंगना,चांद की चांदनी भी अब मेरो बदन जलावे है।
फैली स्याह काली अंधियारी ये रात,जियरा मा आग लगावे है।।

झर झर झरते झरने नैनन ते,जैसे कृष्ण ते बिसर रहीं हों यसुदा मइयां।
जैसे चल दिए हों कृष्ण छोड़ गोकुल को,जैसे बिकल भईं हों गइयां।।

खुले अधर ना निकले आखर,बरसे बादर अंखियन से।
कबहुंक ढूंढू कुंज गलिन में, कबहुंक पूछूं सखियन ते।।

छोड़ चले क्यों हमको मोहन,हमसे ऐसी कौन कैसी भूल भई।
याद करे ना बंसी तोरी, प्रेम मगन धुन तक है हमको भूल गई।

आओ कान्हा लौट तुम आओ, ये व्याकुल राधा तुम्हें पुकारे है,
मत बन जाओ निष्ठुर,निर्मोही इतने,तेरी साथी तुम्हें पुकारे है।

क्यों रूठ गए हो मुरलीधर यूं,वापस कब आओगे,सुधि लेने को,
स्वप्न तुम्हारे सजाए हैं हमने मोहन,कब आओगे श्रुति देने को।

क्यों छोड़ गए क्या पाप हुआ,राधा तुमसे क्यों बिछड़ गई
इतना रोई यमुना मईया कि दुई अंखियां उनकी लाल भई।।

कभी यमुना की धारा में,कभी संग-संग परछाई बन चलते हो कन्हाईया।
पूजा,दर्पण,अर्पण, समर्पण में तुम हो, अब तुम ही तुम दिखते हो कन्हाईया।।

~आकांक्षा मगन “सरस्वती”


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© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”