...

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परिस्थितियाँ और चरित्र
उठो, बढ़ो आगे, सामना करो तुम,
जैसे भी हो तुम्हारे लिए संघर्ष।
निजी ब्यक्तित्व में कहे जाओगे जयवीर तुम,
इससे उत्कृष्ट नहीं है तुम्हारे निष्कर्ष ।।

स्वयं ड़र ही भयभीत हो जाता देख जिसे,
तुम हो ऐसे पराक्रमी विक्रम।
थकाएगा क्या कोई तुम्हें,
क्यूँके मन से किया है लक्ष-भेदी परिश्रम ।।

बाहरी समस्याओं से उलझने से पहले
तुमने किया है अंतर्दुविधाओं पर जय।
तुम ही हो सही मूल्यों में पारदर्शी अजय
कोई और क्या कर पाएगा तुमपर विजय।।

तुम ही तो हो अदम्य साहसी,
जिसने परिस्थितियों से मुँह न फेरा कभी।
तुमसे अच्छा यहाँ कौन हो सकता है भला,
क्यूँके वर्तमान में जीकर सारे अनुभवों को समेटा अभी ।।

© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम