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ज़िंदगी कभी शोला तो कभी शबनम
#Raindrops

ज़िंदगी पल-पल इस क़दर फिसल रही है मेरे हाथ से,
जैसे फिसल रही हो बारिश की बूँदें खिड़की के काँच से।
बिखर रही है ज़िंदगी शनै:शनै: बारिश के पानी की तरह,
बह रही है वक़्त के बहाव में वो एक तिनके की तरह।

पानी का बुलबुला ही तो है आख़िर ये ज़िंदगी,
आज है कल नहीं, नश्वर है ये शाश्वत नहीं है।
घड़ी की सुइयों की तरह चलती रहती है निरंतर,
किसी के रोकने से ये कभी रुकती नहीं है।

कभी ख़ुशियों के बादल बनकर बरसती है,
कभी ग़मों का सैलाब बनकर कहर ढाती है।
अलग-अलग रंग हैं इसके, अलग-अलग रूप हैं,
ज़िंदगी कभी शोला तो कभी शबनम बन जाती है।

© दुर्गाकुमार मिश्रा