...

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एक कहानी
एक कहानी लिखी थी जो हमने, यहां सिर्फ लिखने का सोचा था।
शुरुआत उसकी तुम्हारी हंसी से हुई, जो एक ठंडी हवा का झोंका था।

बातों में मेरी अब तुम्हारा जिक्र आने लगा था, अपना ये दिल तुम्हें जो अपनाने लगा था।
ख्वाबों में अब तुम्हारा चेहरा नज़र आ रहा था, ये कौन सा नशा हम पर चढ़ता जा रहा था।

दिल को थाम कर एक रोज़ हमने भी पूछ लिया, कि क्या है उसमें ऐसा जो तुने इतना आगे का सोच लिया।
दिल के जवाब ने हमें भी हैरान कर दिया, अपनी नादानियों का इल्ज़ाम उसने हम पर डाल दिया।।

बोलता है ये तेरी आंखों का कुसूर है, जो मिलीं हैं उसकी नज़रों से तो उठा ये सुरूर है।
कसूर है तेरे इन कानों का, जो अब उसको ही सुनना चाहते हैं।।

कुसूर है दिमाग का, जो अब उससे बात करने को सौ पेंच लड़ाता है।
दिल को तो सबने बस यूं ही बदनाम कर रखा है, अपनी अपनी गलती का नाम हम पर लगा रखा है।।

जब तेरी सांसे ही बढ़ जाती हैं उसे देखकर, तो ये दिल क्यों न तेज़ धड़केगा।
उसे पाने की तेरी जो चाहत है, रोज़ तेरी नाकामी पर क्यों न ये तड़पेगा।।

दिल ने फिर ये दास्तान सुनाई, और आगे की हमें तरकीब बताई।
की अगर खत्म करना है ये दर्द, तो बोल दे उसे तू जाकर‌।।

मोहब्बत थी है और रहेगी तुमसे, अब चाहे तो अपनाकर आबाद करदो।
या ठुकराकर हमारे दिल को, इस ज़माने को एक नया शायर देदो।।


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