...

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गज़ल भी , सपना भी और तुम भी
फिर बेजान कर गया ,वो सिलसिला इश्क
ना भाती है जिंदगी, न जाती है जान मेरी

हमारा इश्क़ भी अब , LIC बीमा बन गया
किश्तों की payment बाकी है उसकी , पर यादें वो बतौर बोनस दे गया

समझ आया अभी इस पल, फलसफा ए गुलज़ार मुझे
क्यों वो इतनी भीड़ में , हर रोज़ ख़ुद को तन्हा कहता गया

इश्क़ को बेवफ़ा कहूं , आप क्या चाहते हो मेरे खुदा की तौहीन करूं
अजी, मैं तो रब दी पेला , मेरे यारा ना सजदा करूं

लगता नहीं अब कुछ यहां , अपना भी
तेरी यादों से निकलूं , तो देखूं फिर कोई सपना हंसी

गज़ल भी , सपना भी , और तुम भी
ये तो सिर्फ़ लिखावट में साथ आनी है

और जब कोई पूछे हमसे , हाल हमारा
मुस्कुराकर सब ठीक है कहना , जे तो मेरी आदत पुरानी है

मुद्दतो से मिली हैं , ये कुछ पलों की फुर्सत हमें
अब जिन्दगी आखरी दम तक , तुम्हारी यादों में बितानी है


© _💘आज की बात💘_