...

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Aajad parinda.
आजाद परिंदा हूँ मेरी आजादी को न बांधो तुम,
उड़ना चाहती हूँ खुले गगन में मेरी उड़ानों को न रोको तुम।
अभी तो मैने पूरे पंख फैलाना ही नहीं सीखा,
तुम अभी से मेरे पंख काट रहे हो,
मेरी आजादी को तुम फर्क में बाँट रहे हो।।
अगर फर्क होता तो बनाने वाला जन्म की जगह अलग बनाता,
तुम्हारी अंतिम क्रिया मेरी अंतिम क्रिया अलग बनाता।
मैं कटी पतंग की तरह आसमाँ में उड़ना चाहती हूँ,
मैं हवा के संग आसमाँ को नापना चाहती हूँ।।
अभी तो तुमने मेरे हौसलों की उड़ाने कहाँ देखी है,
माँ की ममता, बहन का प्यार कहाँ देखा है।
स्त्री के त्याग को तुम उसकी गुलामी समझते हो,
अपने आप को शूरवीर उसे कायर समझते हो।।
कायर नहीं हूँ मैं, समर्पण जानती हूँ,
अभिमानी नहीं हूँ मैं, स्वाभिमान जानती हूँ।।
मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए में सब कुछ कर सकती हूँ,
तुम बस मेरे स्वाभिमान को ठेस न पहुंचाओ,
में उसके लिए सबसे लड़ सकती हूँ।।
#premonition
© Adv. Dhanraj Roy kanwal