Aajad parinda.
आजाद परिंदा हूँ मेरी आजादी को न बांधो तुम,
उड़ना चाहती हूँ खुले गगन में मेरी उड़ानों को न रोको तुम।
अभी तो मैने पूरे पंख फैलाना ही नहीं सीखा,
तुम अभी से मेरे पंख काट रहे हो,
मेरी आजादी को तुम फर्क में बाँट रहे हो।।
अगर फर्क होता तो बनाने वाला जन्म की जगह अलग बनाता,
तुम्हारी अंतिम क्रिया मेरी अंतिम क्रिया अलग बनाता।...
उड़ना चाहती हूँ खुले गगन में मेरी उड़ानों को न रोको तुम।
अभी तो मैने पूरे पंख फैलाना ही नहीं सीखा,
तुम अभी से मेरे पंख काट रहे हो,
मेरी आजादी को तुम फर्क में बाँट रहे हो।।
अगर फर्क होता तो बनाने वाला जन्म की जगह अलग बनाता,
तुम्हारी अंतिम क्रिया मेरी अंतिम क्रिया अलग बनाता।...