...

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आ अब लौट चलें
आ अब लौट चलें घर दोबारा
थक कर जीवन की नीरस राहों पर
सह - सह कर जालिम दुनिया के ज़ुल्मो को
उठाये निराशा के बोझ इन हारे कंधों पर
बस थक गए है इन झूठी महफिलों से

आ अब लौट चलें घर दोबारा
जिंदगी ने उलझाया ऐसे अपनी उलझनों में
खोजते बेमतलब सवालों के जबाबो को
किस्मत के मारे फिर भी लिये उम्मीदों का सहारा
कभी गिरते ......
कभी संभलते....
कभी उड़ते.....
कभी हारते…

आ अब लौट चलें