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साँझ करेगा अगुवाई
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है
दोपहर कल के लिए निकला है
अब उठो तुम है इंतजार किसका
चांद तारे कर रहे श्रृंगार जिसका,
वही निशा धीरे धीरे पांव पसार रही,
संग उसके जुगनुओं की कतार रही,
रात रानी की खुशबुओं से सराबोर,
आ रही जैसे उन्मादित और विभोर,
इतरा रही कितनी चंचल चितचोर,
अपनी चुप्पी में भी मचाती हुई शोर,
महसूस करो इसकी रमणीयता चहुँ ओर,
भोर का आगमन करेगा विदाई इसकी,
साँझ फ़िर कल करेगा अगुवाई इसकी।
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