...

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कविता- बुलंद है हौसलें।।
तू कदम से कदम बढ़ा।
रुक मत फासलें कम हो जाने से।।

तू तो सागर है।
फिर क्यों रुकता है,इनकी बौछारों-से।।

तू डर मत।
किसीके डराने से।।

तुझे तो आसियाना बनाना है।
फिर क्यों ढील दे रखी अपने बुलंद अरमानों को।।

बेरुखी ज़बान है, इनकी ।
तू टूट मत इनकी बातों से।।

माना मुश्किल है सफर ।
पर तू तो मजबूत है, इन चट्टानों-से।।

तू तो एक प्रबल ज्योत हैं।
फिर क्यों बुझता है, लोगों के बुझानें से।।

तुझमें ठहराव कहां‌‌ हैं।
तुझे तो बढ़ना है,आने वाले कल के राहों के लिए।।

बेमतलब नहीं तेरे सपने ।
जो छोड़ दे तू कुछ दिक्कतों को आ जाने से।।

इतने भी नाज़ुक नहीं तेरी ताकत।
जो बदल दे तेरे अरमानों को।।

तू दृढ़, सहज और क्षमता से भरपूर हैं।
तू मत बदल अपनें मजबूत इरादों को।।

सफलताओं की मंज़िलों
को तुझे बनाना है।।

फिर तय कर अपनें इरादों को
बस तू बढ़ता चल अपनें ख्वाबों को बनानें में।।

तू रुक मत ।
किसी के बीच में आ जाने से ।।














© NEELAM TIWARI