...

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बचपन की यादें
बचपन की है याद बहुत जब स्कूल जाया करते थे
छुट्टी वाली घण्टी बजती और शोर मचाया करते थे

खट्टी-मीठी इमली वाले दरख़्त बहुत थे रहगुज़र में
ख़ूब निशाना साधकर हम पत्थर बरसाया करते थे

न फ़िक्र थी न होड़ कोई बस अपनी धुन में रहते थे
हम दोस्तों के संग मस्ती की चौपाल सजाया करते थे

हवा से हम बातें करते थे आज़ाद परिंदों की तरह
पिंजरे में क़ैद बेचैन पंछी आवाज़ लगाया करते थे

बहकर न जाने किधर जाती थीं काग़ज़ की कश्तियां
रिमझिम-रिमझिम बारिश में जी भर नहाया करते थे

डूब जाते थे किस्सों में माँ जिनको सुनाया करती थी
किस्सों से निकलकर प्रेत ख़्वाबों में डराया करते थे

जी करता है उतार फेंकें उम्र की बोझिल शामों को
फ़िर से उन्हीं पलों को जी लें जो बहलाया करते थे
----राजीव नयन