...

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“ शाम सुहावनी माँ ”
सुरमई सी आंखें गुलाबी आंचल ओढ़े लगती शाम सुहावनी माँ,
कदमों की तेज़ चमक धूल में धूमिल होती रंग ज़मीं कि धानी माँ,,

क़्या बख़ान तेरे प्यार का असल में इसे ही कहते प्यार रूहानी माँ,
गालियां मार डांट सब सुनाती फिर भी ठहरी लब पे चाशनी माँ,,

हाथों की महकार ऐसी महसूस करूं तो...