तुम्हारी महफ़िल में…
क्या आज भी सजती है महफ़िल तुम्हारी
क्या आज भी याद आती है तुम्हें हमारी
एक अर्सा बीत गया जिस बात को वो
क्या आज भी ज़रूरी सी लगती है सारी!!
क़लम से काग़ज़ पर उतारे हैं ये जज़्बात
ये उम्मीद से कभी पढ़ो तुम इन्हें दिन-रात
कल का क्या पता कल किसने देखा है
बस...
क्या आज भी याद आती है तुम्हें हमारी
एक अर्सा बीत गया जिस बात को वो
क्या आज भी ज़रूरी सी लगती है सारी!!
क़लम से काग़ज़ पर उतारे हैं ये जज़्बात
ये उम्मीद से कभी पढ़ो तुम इन्हें दिन-रात
कल का क्या पता कल किसने देखा है
बस...