...

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कुछ इस तरह
वो कुछ इस तरह अपना किरदार बदल गयी
जैसे कलम की स्याही
पन्नों पर निशान छोड़ गयी

वो एक चाहत को छोड़
दूसरी चाहत को पाने निकल गयी
वो सुखी रेत की तरह
हाथों से फिसल  गयी

न जाने आज कलम चली
रोज की तरह लिखने के लिए
या मन मचलने लगा किसी कहानी के लिए

दिल से वो कुछ इस तरह निकली
जिस तरह कोई मुसाफिर निकला
अगले सफर के लिए
बस जाते जाते तन्हाई भरा मंजर दे चली
उससे जुड़ी यादों के लिए

न जाने हालातों की कटौती थी
साथ जीने के लिए
या कोई अफ़साना अधूरा सा रहा
साथ मरने के लिए

अब एक राह सी नज़र आ रही है
तुझे बुलाने या तुझ तक जाने के लिए
नहीं रह सकता मैं
अब इस मझधार में मरने के लिए

जो काट रहा हूँ मैं जिंदगी
शायद उससे कुछ हिस्सा अलग हुआ तेरे लिए
जितना करीब जाता हूँ मैं
वो उतनी कोशिशें करता है दूर होने के लिए।


#MERAISHQ