एक सवाल
सुलझा ली थी गुत्थियां हमने सारे आजमाइशों की तो,तहखाने-ए -दिल में एक सवाल अब भी छुपा हैँ |
मुझे ले डूबेंगी मेरी रुस्वाइयाँ, मुझमे फलक को छूने का अब ख़्वाब कहा हैँ |
जर्द चेहरे पे दिखती हैँ फ़िक्र की लकीरें बस अब अंदाज़ में लाउबालीपन कहाँ हैँ |
पहले झटक देते थे जो कोमल हाथों को जो लोग, अब उनके...
मुझे ले डूबेंगी मेरी रुस्वाइयाँ, मुझमे फलक को छूने का अब ख़्वाब कहा हैँ |
जर्द चेहरे पे दिखती हैँ फ़िक्र की लकीरें बस अब अंदाज़ में लाउबालीपन कहाँ हैँ |
पहले झटक देते थे जो कोमल हाथों को जो लोग, अब उनके...