अब सगळी थारी ग़ज़ल
शायद ही लिखबा की सोच,लिखी कोई ग़ज़ल
पण हर नई बात रै मांय,म्हाने दिखी नई गजल
बार बार आखड़्या, उठ्या पाछा चाल पड़्या
नुक्सान को नफ़ो ओ हुयो, सीखी नई गजल
गज़ल तो मन को चंदन है, सदा महकती रहसी
कोनी लिखी...
पण हर नई बात रै मांय,म्हाने दिखी नई गजल
बार बार आखड़्या, उठ्या पाछा चाल पड़्या
नुक्सान को नफ़ो ओ हुयो, सीखी नई गजल
गज़ल तो मन को चंदन है, सदा महकती रहसी
कोनी लिखी...