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शून्यता

कठिन जगत में काम, शून्य बनाना स्वयं को।
तापसी जोगी तमाम,मुनी ऋषि इसी लगन में।।
मनगति है नीर समान, ये ऊपर से नीचे चले ।
मानव मन खड़ा मचान, जंगल विचरे जानवर।।
मन लोभी लालच मोह, सोच जहां तक स्वार्थी।
जंग खा जाता सब लोह, विकार भरीहै व्यवस्था।।
शक्ति अतुलित शून्यकी, हालांकि यह है अमान।
जुड़े तो कर दे दस गुना, भिड़े तो शून्य समान।।
नामुमकिन गर यह नही, कठिन बहुत यह काम।
पा ली जिसने शून्यता, वह सम ईश्वर सुख धाम।।
शून्य से आगे की यात्रा, चलती रहती है अनंत।
अंतहीन का अंत क्या, जो उदगम आदि अनन्त।।