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ये ज़िन्दगी जितनी पूरी , उतनी ही अधूरी भी
गुमसुम है ये ज़मीं , है गुमसुम ये आसमां भी
बिखर रहे है कहीं किसी दिल के अरमाँ भी
मेरे लबों को छूँ गयी बूँदें नमकीन बारिश की
अन्दर बवंडर है कोई और ज़िस्म बेअसर भी
मेरे ख़्वाबों के मक़बरे पर नये ख़्वाबों की तामीर
और मख़मूर मिज़ाज ए हयात गमों से अमीर भी
बुनियाद ए अक़ीदा मेरी कभी कमज़ोर तो नही
हौसले की क़लम से लिखी मैंने सफ़ीना ए ज़ीस्त भी
तेरी क़ाबिलीयत, तेरी शोहरत बेशक़ मुझसे ज़ियादा है
पर तूफ़ां से गुज़रकर हर इम्तिहान पास किया मैंने भी
उम्र की इस दहलीज़ पर हासिल हुए कुछ तजुर्बे भी
हो रही है ये ज़िन्दगी जितनी पूरी , उतनी ही अधूरी भी