इश्क-ए-इबादत
इश्क करो,,औ फिर इश्क को आजमाया करो,,
मियां,,जुनून-ए-इश्क के नखरे भी उठाया करो,,
इश्क,,इबादत है,,खुदा का अक्स है इसमें,,,
इसकी खुशबू से,,,रूह को महकाया करो,,
नसीबवार हो,,जो इसके पहलू मे आ गए,,
अपने मुकद्दर पर,,कभी तो रश्क खाया करो,,
जो छू भी न सके,,वो क्या जाने तिलस्म इसका,,
सच्ची मोहब्बत,, के जलवे आलिमो को बताया करो,,,
खुदा की रजा थी,,ये रंज-ओ-गम,,ये बेवफाईयां,,,
उसके ही दर पर,,सुकून के वास्ते दामन फैलाया करो,,
© kuhoo
मियां,,जुनून-ए-इश्क के नखरे भी उठाया करो,,
इश्क,,इबादत है,,खुदा का अक्स है इसमें,,,
इसकी खुशबू से,,,रूह को महकाया करो,,
नसीबवार हो,,जो इसके पहलू मे आ गए,,
अपने मुकद्दर पर,,कभी तो रश्क खाया करो,,
जो छू भी न सके,,वो क्या जाने तिलस्म इसका,,
सच्ची मोहब्बत,, के जलवे आलिमो को बताया करो,,,
खुदा की रजा थी,,ये रंज-ओ-गम,,ये बेवफाईयां,,,
उसके ही दर पर,,सुकून के वास्ते दामन फैलाया करो,,
© kuhoo