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मौसम ने करवट बदली
मौसम ने करवट बदली
ठंडी ठंडी बयार चली
मौसम के करवट लेते ही
मेघा बरसे रिम झिम
मन मयूर बन नाचै
छम छम छम छम
मौसम ने करवट बदली
कोयल कूके कू कु
पपीहे बोले सुन सुन
मौसम ने फिर करवट ली
बहती बयार बोली देख
मैं तो बराबर चली
धर्म मजहब से परे हट के चली
फिर क्यों मानव ने
धर्म मज़हब की बातें रटी
ये बयार भी तुझसे मुझसे कहे
क्यों नहीं तूने मुझसे सुनी
बिन बात के हुई कहा सुनी
अपने ही आप से ही
तू सदैव रही डरी डरी
देख मैं तो मस्त पवन बन बही
बही खाते में तेरी हर बात लिखी
देख मैं तो तेरा मेरा न देख
मन मैला न कर
एक समान ही बहती चली
कल कल करते झरने ने भी
मेरी हर एक बात सुनी
पर तूने न...