...

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एक था बचपन
एक था बचपन पानी सा
बहता रहता गुड़धानी सा
थे खिलौने छोटे छोटे...
संसार अपना छोटा सा ।

दिल होता बहुत बड़ा सा
कंचे, गुल्लीडंडामें गड़ा सा,
संबंध मधुर, धन था अपना
खेल खिलौने यही था सपना ।
©®@Devideep3612
दादी नानी की कहानी
जैसे सुन रहें परियों की जुबानी
वो लड़कपन की रवानी
मीठा था गुड़, मीठा पानी ।

कहते बड़े, हो जाओ सयानी
वो नटखटपन, वो नादानी
तेरी मेरी थी वही कहानी
डराती रातें, सुबह सुहानी ।
©®@Devideep3612
चंचल तन थे विशुद्ध मन थे
कपड़े, कोई नंगे बदन थे
दुख के बोल कहां सुने थे
बड़ा छोटा वहां एक थे ।

ऐसा था बचपन पानी सा
उत्सवों के रवानी सा
बहारों के अगवानी सा
आज किताबी कहानी सा ।
©®@Devideep3612