...

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ऐसा तो नहीं इ़श्क़ में होता उसे कहना
चंदा की तरह सहन में आजा उसे कहना
वीराँ है किसी घर का दरीचा उसे कहना

आँसू भी मेरी आँख के अब सूख चुके हैं
अब दश्त से बहता नहीं चश्मा उसे कहना

कहना के फ़क़त एक ही तकलीफ़ को झेले
ऐसा तो नहीं इ़श्क़ में होता उसे कहना

यादें भी लगीं होने मह़ू वक़्त के हमराह
अब कुछ नहीं जीने का सहारा उसे कहना

कहना के बरस जाए किसी अब्र की मानिंद
सेहरा है कई साल से प्यासा उसे कहना

मुमकिन हो पलट आए अभी आस है बाक़ी
सालिम है अभी शहर-ए-तमन्ना उसे कहना