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काल्पनिक मुलाक़ात
तुमसे ही बस चहरे पर मुस्कान आती है, लिखते भी जब तुमको है तब ही लेखन में रौनक और जान आती है।
हा शायद इसलिए बिखरे हुए है , की तुम आओगे हमें समेंटने यह पता है ;
प्यार से गले लगाकर जो तुम बातो की कहानी सुनाओगे हमे वो भी पता है ।
पता बस इंतज़ार में लगने वाले उस वक्त का नहीं है, नहीं शिकायत नहीं कर रहे। बस तुम्हे पाने, हा तुम्हे पाने को आतुर है ;
अच्छा सब अब हम तुम्हे कविता से ही सुना दे , क्यों तुम नहीं आओगी हमारी बाते सुनने ? बोलो ना ? अभिनय कर रही हो ना क्योंकि तुम्हे पता है हम व्याकुल है।
चलो छोड़ो ये सब बाते , बात तुम्हारी कुछ करते है ।
हाल केसा है तुम्हारा , शुरुआत कुछ इसी से करते है।
अब क्या ! अच्छा अब हाथ थामने का हक भी हमसे छीन लोगी क्या ?
अच्छा तो क्या कोई देखा लेगा तो, अब क्या ज़माने के डर की वजह से, हमसे प्यार करने का हक भी छीन लोगी क्या।
चलो बस नहीं थामता हाथ और नहीं चूमता तुम्हारे गाल ,
तो फिर अब आलती-पालती लगाओ और अपनी गोद में सुलाओ , हा अभी ! नींद नहीं आती सही से, कुछ सुस्ता लेंगे तुम्हारी ज़ुल्फो की...