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ग़ज़ल
ख़ुद-परस्ती का ये साया नहीं जाता मुझसे
एक भी रब्त निभाया नहीं जाता मुझसे
आजमाता हूँ सभी तौर-तरीके लेकिन
एक वो शख़्स भुलाया नहीं जाता मुझसे
यूँ तो मिलती है जहाँ भर की सहूलत मुझको
जिसको पाना है वो पाया नहीं जाता मुझसे
तुम जो कहते हो मेरे साथ में नर्मी बरतो
दिल तो वैसे भी दुखाया नहीं जाता मुझसे
शाह-ओ-सरदार-ओ-ख़ुदा हो या ख़ुदा का दर हो
सर किसी ओर झुकाया नहीं जाता मुझसे !
© हर्ष
एक भी रब्त निभाया नहीं जाता मुझसे
आजमाता हूँ सभी तौर-तरीके लेकिन
एक वो शख़्स भुलाया नहीं जाता मुझसे
यूँ तो मिलती है जहाँ भर की सहूलत मुझको
जिसको पाना है वो पाया नहीं जाता मुझसे
तुम जो कहते हो मेरे साथ में नर्मी बरतो
दिल तो वैसे भी दुखाया नहीं जाता मुझसे
शाह-ओ-सरदार-ओ-ख़ुदा हो या ख़ुदा का दर हो
सर किसी ओर झुकाया नहीं जाता मुझसे !
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