...

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ख्वाहिश
सुनों!!
यूं तो बारिशों का होना उसके शहर में आम बात है,
फिर भी क्यूं ना, एक किस्सा कुछ यूं हो जाए,
वो भूल आएं छाता घर और उसी रोज बरसात हो जाए,
माना ये भीगीं हरियाली, वो सुहानी शाम उसके लिए आम बात है,
फ़िर भी है ख्वाहिश, कि चुरा कर शामें उसके शहर की,
साथ उसके कुछ यूं बिताऊं, कि हर लम्हें में वो ख़ास हो जाए,
यूं तो पढ़कर देखी है किताबें कई, मांगा है अरदास में भी,
पर है ख्वाहिश, कि हो कोई कलमा जो पढूं मैं और वो सदा के लिए मेरे नाम हों जाए....
© Rajat