...

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भाई.!!!
कैसे चले गए तुम इतनी दूर कि वापस ही न आए
क्या माँ-बाप भाई-बहन की ज़रा भी फ़िक़र न रही

सुनते हैं वक़्त देता है हर बात का जवाब मगर
अब मुझमें ही सवाल करने की ताक़त न रही

तुमसे पूछ पाती जो तुम्हारी परेशानियों का सबब
वक़्त-ए-जुदाई ऊपरवाले से इतनी मोहलत न रही

सच ही कहते हैं लोग कि कोई ख़ुदा नहीं जहाँ में
सो अब मुझे दुनिया में किसी से शिक़ायत न रही

छीन लिया क़िस्मत ने मुझसे मेरे घर का उजाला
हर तरफ़ अँधेरा है अब घर में कोई सहर न रही

राखी के धागे अक्षत और सौ साल जीने की दुआएँ
इन सबके बावजूद भी क्यूँ तुम्हारी लंबी उमर न रही

जिन्होंने अपने ख़ून से सींच कर बड़ा किया तुमको
वक़्त को उन माँ-बाप के आँसुओं की भी क़दर न रही

कहाँ जाएँ कहाँ ढूँढें कि कहीं से तो लौट आओ
भाई.! तुम्हारे बग़ैर इस घर में ज़रा भी रौनक न रही..!