...

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काश!!
काश! कोई ऐसा होता
जो मुझे मुझसे ज्यादा समझता

जिससे कह पाती मैं वो सब बातें
जो नहीं कह सकती हर किसी से

मेरे अनकहे शब्दों को वो समझता
संभालता मेरे पस्त होते हौसलों को

मुझसे ज़्यादा मेरी परवाह करता
जिसकी ख़ातिर मैं रात रात जागती

जिद कर अपनी बात मनवाती
रूठ कर नखरे दिखाती

मनाते ही उसके गले लग जाती
काश कोई तो ऐसा होता.....
© ऊषा 'रिमझिम'