...

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"अल्फ़ाज़ में तेरा ही ज़िक्र"
हर अल्फ़ाज़ में तेरा ही ज़िक्र,
तेरे नाम से जुड़ा मेरा संसार रहा..!

कागज़ क़लम सा रिश्ता हमारा,
स्याही(विश्वास) जिसका आधार रहा..!

मोहब्बत की कहानियाँ याद आती जवानियाँ,
निशानियों में प्रेम पत्रों का प्रचार रहा..!

रगों में लहू सा बहती रहती,
मोहब्बत का नव संचार रहा..!

हर स्वरुप में सुख की छाँव ग़म की धूप में,
तेरे साथ का समुन्दर स्वीकार रहा..!

डोर इश्क़ की तोड़नी चाही कईयों ने,
पर इश्क़ हमारा अंतिम सफ़र तक आख़िरकार रहा..!
© SHIVA KANT