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ग़ज़ल-250/2022
जब हुई शाम, उठ गया पर्दा
हो गई जब सहर, गिरा पर्दा
थी कहानी ही बस पुरानी मगर
था तमाशा नया, नया पर्दा
साथ किरदार के वो रोया भी
साथ उसी के ही खुश हुआ पर्दा
मेरा किरदार रंग लाता ज़रूर
पर किसी ने गिरा दिया पर्दा
जो बिकाऊ था बिक गया आख़िर
छोटा पर्दा हो या बड़ा पर्दा
रंग अलग हैं मगर है नस्ल वही
भगवा पर्दा हो या हरा पर्दा
ख़त्म होने के पहले क्यों "नाकाम"
कुछ तमाशे में गिर गया पर्दा
हो गई जब सहर, गिरा पर्दा
थी कहानी ही बस पुरानी मगर
था तमाशा नया, नया पर्दा
साथ किरदार के वो रोया भी
साथ उसी के ही खुश हुआ पर्दा
मेरा किरदार रंग लाता ज़रूर
पर किसी ने गिरा दिया पर्दा
जो बिकाऊ था बिक गया आख़िर
छोटा पर्दा हो या बड़ा पर्दा
रंग अलग हैं मगर है नस्ल वही
भगवा पर्दा हो या हरा पर्दा
ख़त्म होने के पहले क्यों "नाकाम"
कुछ तमाशे में गिर गया पर्दा
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