...

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अँदाज ए अजीब
आज देखा!
मैने युग फेर।
ये बाते व्यक्ति का रुख सैर।
यहाँ आधुनिकता का दौर चले।
दौडे हर वक्त,शख़्स वक्त बिताय।
अब तो बड़ो ने भी बदला मिजाज।
पह्ले जो देखते थे बात की बाट।
अब वो भी सन्न गये इस आधुनिकता के लिबास।
सही किया,जब वो तरसे तो क्या मह्त्व।
अब मह्त्व को जान करे उनसे छोटे अनबन।
तरसे।अब वो तके बात की राह।
जब,आया उनपर वक्त का पहाड़।
बदला मिजाज।
बडो से मुख फेर।
किया छोटे को आगाज।।
क्या,वो बड़े तुम्हारी बात में जोते थे आनन्द।
आनन्द था उनको तुम्हारी यादों पर।
क्या,कुछ बदला इस दौर।
बस उन्होने दूँढ़ ली है अलग आनन्द की छोर।
© 🍁frame of mìnd🍁