remarriage diary
चाय की चुस्कियों में,
सजी वो मुलाकात थी
कुछ आज की , तो कुछ
बीते कल की बातें थी
भूली- भटकी जो आज भी
यादों में ताज़ा थी
जीवन में नहीं, पर दिल में
आज भी दस्तक जिनकी ताज़ा थी । ।
अब क्या बताएं,
बात मिलने- मिलाने की थी
घर वालों की मर्जी में
हमारी हिस्सेदारी की थी
कि बात बढ़ी, तो उन्होंने हमें
लड़के से मिलवाया
सुन्दर, सुशील संस्कारी कह
सबने परिचय कराया
एक पल को लगा जैसे
हम आगे बढ़ चुके हैं
पर वक़्त अब भी पीछे ही
रुका खड़ा है
शब्दों ने लिया रुप अलग है
पर भाव अब भी वही बनता है । ।
पर मुस्कुराते हुए हमने
सारी बातें सुनी
कुछ समझी तो कुछ नासमझ हमने
अनसुनी करी
बातें कुछ नई ना थी
बस हमारे लिए अब ये खास ना थी
इसलिए ना शायद झिझक थी
ना पिछली बार सी शर्म थी
कि पहले से ज्यादा हम
जवाबों में बेफिक्र थे
अपनी बातों को स्पष्ट रखने में
समर्थ थे ।।
यूँ ही चल रही थी बातें,
कि वो बेबाकी से बोले
" हमारा बस चला,
तो हमको बिदा पर भी ना रोने देगे "
सुनते ही कुछ वक़्त के पन्ने
खुद ब खुद पलट गए
हल्की सी नमी आँखों में
और चेहरे पर हँसी
जो बिखरा गए
देख जिसे वो झेप गए
शायद हमारे भावों को देख
सोच में पड़ गए । ।
उनकी दुविधा देख
हमने कहा,
अरे नहीं, आपने कुछ गलत नहीं कहा
बस ये ना रोने देने का वादा
जिंदगी भर हँसाने का इरादा
हम पहले भी देख चुके हैं
बड़ी करीब से समझ चुके हैं
कि गहराई इतनी है इन बातों में
कि हम अब कब हँसते हैं
कब आंसुओं को पीते हैं
समझ अब ,
हमें ही नहीं आता है
बस हँसी का ये पहरा
इन होंठों से ना कभी जाता है।
*****
सजी वो मुलाकात थी
कुछ आज की , तो कुछ
बीते कल की बातें थी
भूली- भटकी जो आज भी
यादों में ताज़ा थी
जीवन में नहीं, पर दिल में
आज भी दस्तक जिनकी ताज़ा थी । ।
अब क्या बताएं,
बात मिलने- मिलाने की थी
घर वालों की मर्जी में
हमारी हिस्सेदारी की थी
कि बात बढ़ी, तो उन्होंने हमें
लड़के से मिलवाया
सुन्दर, सुशील संस्कारी कह
सबने परिचय कराया
एक पल को लगा जैसे
हम आगे बढ़ चुके हैं
पर वक़्त अब भी पीछे ही
रुका खड़ा है
शब्दों ने लिया रुप अलग है
पर भाव अब भी वही बनता है । ।
पर मुस्कुराते हुए हमने
सारी बातें सुनी
कुछ समझी तो कुछ नासमझ हमने
अनसुनी करी
बातें कुछ नई ना थी
बस हमारे लिए अब ये खास ना थी
इसलिए ना शायद झिझक थी
ना पिछली बार सी शर्म थी
कि पहले से ज्यादा हम
जवाबों में बेफिक्र थे
अपनी बातों को स्पष्ट रखने में
समर्थ थे ।।
यूँ ही चल रही थी बातें,
कि वो बेबाकी से बोले
" हमारा बस चला,
तो हमको बिदा पर भी ना रोने देगे "
सुनते ही कुछ वक़्त के पन्ने
खुद ब खुद पलट गए
हल्की सी नमी आँखों में
और चेहरे पर हँसी
जो बिखरा गए
देख जिसे वो झेप गए
शायद हमारे भावों को देख
सोच में पड़ गए । ।
उनकी दुविधा देख
हमने कहा,
अरे नहीं, आपने कुछ गलत नहीं कहा
बस ये ना रोने देने का वादा
जिंदगी भर हँसाने का इरादा
हम पहले भी देख चुके हैं
बड़ी करीब से समझ चुके हैं
कि गहराई इतनी है इन बातों में
कि हम अब कब हँसते हैं
कब आंसुओं को पीते हैं
समझ अब ,
हमें ही नहीं आता है
बस हँसी का ये पहरा
इन होंठों से ना कभी जाता है।
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