...

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रास्ता ढुढ रहा हूँ
कविता --

रास्ता बना रहा...!

मेरे पैदा होने के ,
दस मिनट पहले ,
मेरे दुश्मन पैदा हो गए!
तभी तो मेरी राहों में ,
सरेआम ,
बेशुमार कांटे बो गए!
और मैं अब,
उन कांटों को,
अपने हाथों से,
हटा रहा हूं!
आने वाली पीढ़ी को,
कोई कांटा न चुभे,
इसलिए ,
सुगम रास्ता बना रहा हूँ