...

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एक लम्हे की कीमत जो तुम सिखाकर गए..
समझा नहीं था अब तक, कीमत एक लम्हे की
लड़ते, मुस्कुराते कभी खामोशी में काटे
कभी कटे इंतजार में, कभी तेरे दीदार में
कीमत समझ नहीं आती,
अक्सर हाथ लगी चीज़ों की
फिर तुम गए.... कहीं खो से गए।
वो हंसना, वो लड़ना
वो इंतजार, वो दीदार
वो साथ कटे हर एक लम्हे।
अब वही तो कुछ रंग है, इस बेरंग जिंदगी के
समझ गया हूँ कीमत, उन हर एक लम्हों की
जाना तुम्हारा भी, व्यर्थ नहीं गया।
मेरा जाना भी क्या
तुम्हें कुछ सीख देकर गया??
या वह भी मुझसा बेकार ही गया।
© Joginder Thakur